वास्ते हज़रत मुराद-ए- नेक नाम       इशक़ अपना दे मुझे रब्बुल इनाम      अपनी उलफ़त से अता कर सोज़ -ओ- साज़    अपने इरफ़ां के सिखा राज़ -ओ- नयाज़    फ़ज़ल-ए- रहमान फ़ज़ल तेरा हर घड़ी दरकार है फ़ज़ल-ए- रहमान फ़ज़ल तेरा हो तो बेड़ा पार है

 

 

हज़रत  मुहम्मद मुराद अली ख़ां रहमता अल्लाह अलैहि 

 

हज़रत-ए-शैख़ उसमान मग़रिबी

रहमतुह अल्लाह अलैहि

 

आप रहमतुह अल्लाह अलैहि का इस्म ग्राम सय्यद बिन सलाम मग़रिबी है। आप रहमतुह अल्लाह अलैहि शेख़ अब्बू अली कातिब के मुरीद और ख़लीफ़ा हैं। आप रहमतुह अल्लाह अलैहि ने अबुलहसन दीनोरी रहमतुह अल्लाह अलैहि से भी इस्तिफ़ादा किया। कैरो उन मग़रिब के रहने वाले थे। कई सालों तक आप रहमतुह अल्लाह अलैहि सहराओं में गोशा नशीन रहे हिताय कि कसरत इबादत की वजह से आँखों में हलक़े पड़ ने की वजह से शक्ल भी ख़राब होगई थी। इसी दौरान इलहाम हुआ कि मख़लूक़ से राबिता क़ायम करो। चुनांचे आप रहमतुह अल्लाह अलैहि मक्का मुकर्रमा तशरीफ़ ले गए।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

आप रहमतुह अल्लाह अलैहि फ़रमाते हैं कि मुजाहिदात की इबतिदा में मेरी ये कैफ़ीयत थी कि अगर मुझे आसमान से नीचे फेंक दिया जाता तो मुझे इस में भी इस लिए ख़ुशी महसूस होती क्योंकि में एक ऐसी उलझन में फंस गया था कि खाना खाया जाये या नमाज़ फ़र्ज़ के लिए वुज़ू किया जाये। उन्ही दो उलझनों की वजह से मेरे लज़्ज़त मफ़क़ूद होचुकी थी जो मेरे लिए अज़ीयत का बाइस थी। फिर हालत ज़िक्र मैन मेरे ऊपर ऐसी चीज़ें मुनकशिफ़ होने लगीं कि अगर दूसरों पर मुनकशिफ़ हो जातीं म्यू वो उन को करामतों से ताबीर करने लगता। लेकिन में उस को गुनाह कबीरा तसव्वुर करता था और नींद को भगाने के लिए ऐसे पत्थरों पर जा बैठता जिन की तहा में बहुत अमीक़ ग़ार होते ताकि अगर ज़रा भी पलक झपके तो में ग़ार में जापड़ों। इस के बावजूद अगर मुझे इत्तिफ़ाक़ से इस पत्थर पर नींद आजाती तो बेदारी के बाद देखा कि पत्थर हवा में मुअल्लक़ है और में इस पर बैठा हुआ हूँ।

हज़रत-ए-शैख़ अब्बू उसमान मग़रिबी रहमतुह अल्लाह अलैहि तीस साल मक्का में रहे फिर वहां से नीशा पर तशरीफ़ ले गए और फिर सारा उम्र वहीं रहे। नफ़्फ़ात एलानस में लिखा हुआ है कि शेख़ अब्बू उसमान मग़रिबी रहमतुह अल्लाह अलैहि ने फ़रमाया जिस दिन में दुनिया से जाऊंगा उस दिन आसमान के फ़रिश्ते ज़मीन पर उतरेंगे और मेरी क़ब्र पर मिट्टी डालेंगे। चुनांचे ऐसा ही हुआ आप रहमतुह अल्लाह अलैहि जिस रोज़ इस दुनिया से रुख़स्त हुए उस दिन इतना गुबार उठा कि जहान तारीक होगया और नीशा पर में कोई किसी को ना देख सका। जब आप रहमतुह अल्लाह अलैहि को सपुर्द-ए-ख़ाक कर दिया गया तो मतला साफ़ होगया।

हज़रत-ए-शैख़ अब्बू उसमान मग़रिबी रहमतुह अल्लाह अलैहि ३७२हिज्री को इस दार फ़ानी रुख़स्त हुए। आप रहमतुह अल्लाह अलैहि का मज़ार अक़्दस नीशा पर ईरान में वाक़्य है।